FD Scheme for Pensioners: पेंशन के बाद की जिंदगी में आर्थिक सुरक्षा बहुत जरूरी होती है, और फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) इस सुरक्षा का एक बड़ा हिस्सा होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आपकी FD पर लगने वाला टैक्स आपके लिंग पर भी निर्भर कर सकता है? जी हां! अक्सर देखने में आता है कि एक ही परिवार में पति और पत्नी दोनों की FD होने के बावजूद, पति को टैक्स के मामले में ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ता है, जबकि पत्नी के नाम की FD पर टैक्स में काफी फ़ायदा मिलता है। अगर आप भी पेंशनर हैं और अपनी बचत को सही तरीके से इन्वेस्ट करना चाहते हैं, तो यह आर्टिकल आपके लिए बहुत खास है। यहां हम आपको बताएंगे कि कैसे पत्नी के नाम पर FD करवाने से आप दोनों को टैक्स बेनिफिट मिल सकता है और आपकी रोजमर्रा की जिंदगी आसान हो सकती है।

इस आर्टिकल को पूरा जरूर पढ़ें क्योंकि इसमें हम आपको सीधा और आसान भाषा में पूरी जानकारी देंगे। हम सिर्फ समस्या ही नहीं बताएंगे बल्कि इसका पूरा हल भी बताएंगे, ताकि आप अगली बार FD करवाते समय एक सही फैसला ले सकें और ज्यादा से ज्यादा टैक्स बचत कर सकें। आपकी मेहनत की कमाई बर्बाद न हो, इसके लिए यह जानकारी होना बेहद जरूरी है।

पति की FD पर क्यों लगता है ज्यादा टैक्स? टैक्स स्लैब की पूरी जानकारी

आपको बता दें कि भारत में इनकम टैX की गणना किसी व्यक्ति की कुल आमदनी पर की जाती है। पेंशन भी आमदनी का एक स्रोत माना जाता है। अब अगर एक पेंशनर पति के पास अपनी पेंशन के अलावा अपने नाम पर कोई बड़ी FD है, तो उस FD से मिलने वाला ब्याज उसकी कुल आमदनी में जुड़ जाता है। इससे उसकी कुल टैक्सेबल इनकम बढ़ जाती है और हो सकता है कि वह अगले उच्च टैक्स स्लैब में पहुंच जाए। मसलन, अगर पति की कुल आमदनी 5 लाख रुपये सालाना है और FD के ब्याज से उसे 50,000 रुपये और मिलते हैं, तो उसकी आमदनी 5.5 लाख हो जाएगी। इससे उसे 5 लाख से ऊपर की आमदनी पर 20% की दर से टैक्स देना पड़ सकता है, जबकि पहले वह 5 लाख तक की आमदनी पर सिर्फ 5% टैX दर के दायरे में आता था। इस तरह, एक छोटी सी FD भी उसके टैक्स की रकम में बड़ी बढ़ोतरी कर सकती है।

पत्नी के नाम FD करवाने के टैक्स फायदे

अब बात करते हैं सबसे कमाल के हिस्से की। भारतीय टैक्स कानून महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले थोड़ी ज्यादा टैक्स छूट प्रोवाइड करता है। यह छूट सीधे तौर पर टैX स्लैब से जुड़ी हुई है। आमतौर पर, एक पुरुष टैक्सपेयर के लिए 2.5 लाख रुपये तक की सालाना आमदनी पर कोई टैक्स नहीं लगता है। वहीं, एक महिला टैक्सपेयर के लिए यह सीमा 3 लाख रुपये सालाना तक है। इसका सीधा मतलब यह है कि अगर FD पत्नी के नाम पर है, तो उस FD से मिलने वाले ब्याज पर टैक्स लगने की संभावना कम हो जाती है क्योंकि उसे टैक्स-फ्री आमदनी का लाभ पहले ही ज्यादा मिल रहा है। अगर पति-पत्नी दोनों की अलग-अलग आमदनी है, तो पत्नी के नाम की FD का ब्याज उसकी अपनी आमदनी में जुड़ेगा, जिस पर टैक्स का दबाव कम रहने की उम्मीद होती है।

क्लबिंग ऑफ इनकम का नियम : सबसे जरूरी बात

यहां एक बहुत जरूरी बात का ध्यान रखना होगा। टैक्स बचाने के चक्कर में अगर पति直接 पैसा पत्नी के अकाउंट में ट्रांसफर करके उससे FD करवा लेता है, तो टैक्स के नियमों के मुताबिक, ऐसे में FD से होने वाली आमदनी को अभी भी पति की ही आमदनी माना जा सकता है। इसे ‘क्लबिंग ऑफ इनकम’ का नियम कहते हैं। इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि FD पत्नी के अपने पैसों से ही बनवानी चाहिए, जैसे कि उसकी अपनी पेंशन, उसकी निजी बचत, या उसे मिले गिफ्ट के पैसे। अगर पैसा ट्रांसफर करना ही है, तो उसे उपहार (Gift) के तौर पर दें और इसका सही रिकॉर्ड रखें, क्योंकि पति से पत्नी को दिया गया उपहार टैक्स-फ्री होता है।

पेंशनर कपल्स के लिए स्मार्ट प्लानिंग टिप्स

अपने वित्तीय लक्ष्यों को हासिल करने के लिए एक छोटी सी प्लानिंग बहुत काम आ सकती है।

  • आय का बंटवारा: कोशिश करें कि परिवार की आमदनी के स्रोतों को दोनों पार्टनर्स के बीच बांट दें। पत्नी के नाम पर FD, बचत खाता, या दूसरे निवेश करें।
  • सीनियर सिटिजन सेविंग स्कीम (SCSS): पेंशनरों के लिए यह एक बेहतरीन ऑप्शन है। इसमें न केवल ब्याज दर ज्यादा मिलती है, बल्कि इसमें टैक्स सेविंग का भी एक अलग लिमिट है जो सामान्य FD से ज्यादा हो सकता है।
  • हेल्थ इंश्योरेंस: बीमारी के खर्चे के लिए अलग से बचत करने के बजाय एक अच्छा हेल्थ इंश्योरेंस प्लान लें। इसके प्रीमियम पर सेक्शन 80D के तहत टैक्स में छूट मिलती है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बहुत से छोटे वर्ग और मध्यम वर्ग के पेंशनर इस तरह की छोटी-छोटी बातों की जानकारी न होने के कारण हर साल हजारों रुपये का टैक्स ज्यादा अदा कर देते हैं। थोड़ी सी सजगता और सही प्लानिंग से आप इस पैसे को बचा सकते हैं और अपने रिटायरमेंट के सालों को और भी आरामदायक बना सकते हैं।

सूत्रों के मुताबिक, टैक्स नियम समय-समय पर बदलते रहते हैं, इसलिए कोई भी कदम उठाने से पहले एक चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) से सलाह जरूर लें। वे आपकी specific आर्थिक स्थिति के हिसाब से सबसे ब